शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

श्री बद्रीनाथ जी


जय बद्री नाथ जी
बद्रीनाथ मंदिर जिसे बद्रीनारायण मंदिर भी कहते हैं, अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम में से एक धाम भी है। ऋषिकेष से यह २९४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है| 
ये पंच-बद्री में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बद्री, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

1 महत्व
2 कथा
3 पौराणिक मान्यताओं के अनुसार
4 लोक कथा
5 बद्रीनाथ नाम की कथा
6 दर्शनीय स्थल
7 बाहरी कड़ियाँ

1. महत्व :

बदरीनाथ उत्तर दिशा में हिमालय की अधित्यका पर हिन्दुओं का मुख्य यात्राधाम माना जाता है। मन्दिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ है। प्रत्येक हिन्दू की यह कामना होती है कि वह बदरीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य ही करे। यहाँ पर शीत के कारण अलकनन्दा में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है। अलकनन्दा के तो दर्शन ही किये जाते हैं। यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। वनतुलसी की माला, चले की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

छोटे चार धाम:
1. बद्री नाथ 
2. केदार नाथ 
3. गंगोत्री 
4. यमुनोत्री,

2. कथा :

जय बद्री विशाल
बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचारयात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।
मन्दिर में बदरीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बरफ जमने पर जोशीमठ में ले जायी जाती है। उद्धवजी के पास ही चरणपादुका है। बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी है।

3. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार :

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बद्रीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है। बद्रीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।


4. लोक कथा:

पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नील कंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। ये जगह पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित थी। भगवान् विष्णु जी अपने ध्यान योग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा के समीप ये जगह बहुत भायी। उन्होंने चरणपादुका(नील कंठ पर्वत के समीप) बाल रूप में अवतरण किया और ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप क्रंदन करने लगे। उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का ह्रदय द्रवित हो उठा और वो और शिव जी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पुछा की बालक तुम्हे क्या चहिये? तो बालक ने ध्यान योग करने हेतु वो जगह मांगी। और इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से वो जगह अपने ध्यान योग हेतु प्राप्त की। जो जगह आज बद्रीविशाल के नाम से सर्व विदिद है।
श्री बद्री नाथ जी

 5. बद्रीनाथ नाम की कथा:

जब भगवान विष्णु योग ध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत ही ज्यादा हिम पात होने लगा। भगवान विष्णु बर्फ में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का ह्रदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर(बद्री) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगी। भगवान विष्णु को धुप वर्षा और हिम से बचने लगी। कई वर्षों बाद जब भगवान् विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा की माता लक्ष्मी बर्फ से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा की हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा। और क्यूंकि तुमने मेरी रक्षा बद्री रूप में की है सो आज से मुझे बद्री के नाथ-बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ पड़ा।
जहाँ भगवान बद्री ने तप किया तह वो ही जगह आज तप्त कुण्ड के नाम से जानि जाती है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
 

6. दर्शनीय स्थल :


बद्रीनाथ में तथा इसके समीप अन्य दर्शनीय स्थल हैं-

अलकनंदा के तट पर स्थित गर्म कुंड- तप्त कुंड.
धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल.
पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप(साँपों का जोड़ा).
शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड – शेषनेत्र.
चरणपादुका- जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं, (यहीं भगवान विष्णु ने बालरूप में अवतरण किया था। )
बद्रीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ, जो 'गढ़वाल क्वीन' के नाम से जाना जाता है।
माता मूर्ति मंदिर:- जिन्हें बद्रीनाथ भगवान जी की माता के रूप में पूजा जाता है।
माणा गाँव: इसे भारत का अंतिम गाँव भी कहा जाता है।
वेद व्यास गुफा,गणेश गुफा: यहीं वेदों और उपनिषदों का व्याख्यान और लेखन हुआ था।
भीम पुल: भीम ने सरस्वती नदी को पार करने हेतु एक भरी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीम पुल के नाम से जाना जाता है।
तप्त कुंड
वसु धारा: यहाँ अष्ट वसुओं ने तपस्या की थी। ये जगह माणा से ८ किलोमीटर दूर है। कहते हैं की जिसके ऊपर इसकी बूंदे पड़ जाती हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वो पापी नहीं होता है।
लक्ष्मी वन: ये वन लक्ष्मी माता के वन के नाम से प्रसिद्ध है।
सतोपंथ(स्वर्गारोहिणी): इसी जगह से राजा युधिष्ठिर सदेह स्वर्ग को प्रस्थान किये थे।
अलकापुरी: अलकनंदा न उद्गम स्थान। इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है।
सरस्वती नदी: पूरे भारत में सिर्फ माणा गाँव में ही ये नदी प्रकट रूप में है।
भगवान विष्णु के तप से उनकी जंघा से एक अप्सरा उत्पन्न हुई जो उर्वशी नाम से विख्यात हुई। बद्रीनाथ कसबे के समीप ही बामणी गाँव में उनका मंदिर है।



नर नारायण पर्वत

7 बाहरी कड़ियाँ :

एक विचित्र सी बात है... जब भी आप बद्रीनाथ जी के दर्शन करें तो उस पर्वत(नारायण पर्वत) की चोटी की और देखेंगे तो पाएंगे की मंदिर के ऊपर पर्वत की चोटी शेषनाग के रूप में व्यवष्ठिथ है। शेष नाग के प्राकर्तिक फन साफ़ साफ़ देखे जा सकते हैं।





स्रोत : विकिपीडिया

धन्यवाद,

संयोजन : देव नेगी.


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