सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

कीडा़जडी़ (Yarshagumba) यार्शागुम्बा



परिचय:
हमारी प्रकृ्ति प्राकृ्तिक संसाधनों एवं बनस्पतिक जडीं बूटियों का भण्डार है, जो प्राणियों को उपहार स्वरूप अनेकों प्रकार की जडी़ बूटियों के माध्यम से प्रदान करती है।  इन्हीं में से एक जडीं है कीड़ाजड़ी जो समुद्र तल से 3000 से 6200 मीटर की ऊंचाई वाले  पहाडि़यों (बुग्याली क्षेत्रों) में पायी जाती है।  कीडा़जडी़ एक बहुमूल्य,दुर्लब एवं अद्वितीय जडी़ है,  यह चीन, नेपाल, भूटान, तिब्बत , एवं भारत में उत्तराखंड के एवं अन्य बुग्यालों में पाया जाता है,  यह सीजनल जडी़ है, बर्फ पिगलने के बाद नजर आता है और अप्रेल से जुलाई के बीच में निकाला जाता है,  इसका आकार  बिलकुल कीडे़ की तरह होता है, वनस्पति शास्त्रियों एवं कीट विज्ञानियों के अनुसार यह कवक (फफूंद) की एक प्रजाति है। इसके बारे में यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि यहा बनस्पति है या जीव जन्तु, यह आधी बनस्पति एवं आधा कवक, बफफूंदी के प्रजाती के रूप मे पाया जाता है।  कीडा़ जडी सामान्यत: पनस्पति एवं परजीवी कवक, नरंगी पीली झिल्ली का एक असाधारण संयोजन है, इसका अन्दर का भाग सफेद होता है, इसकी संरचना स्प्रिंग की तरह घुमावदार होता है, जो जमीन के अंदर और बाहर पाया जाता है जमीन के अन्दर कीडे़ के आकर की जडी़ एवं जमीन से बाहर इसका तना होता है,  इनके बारे मे सबके अपने अपने अलग अलग मत है.. कई लोगो के अनुसार कीडा़ जडी़ एक तरह का परजीव है जो कवक के रूप मे पाया जाता है और पहाडो़ मे फर्फवारी के दौरान भूमिगत हो जाता है, और कई लोगों के अनुसार यह सय़ोजन है परजीवी कीटों का जो भूमिगत होते है और बर्फबारी के दौरान या बाद मे पैदा होते है, और गर्मी आने पर भूमि के उपर का भाग गर्मी के कारण सूख जाते है, भूमिगत जड़ कीडा़जडी के रूप मे प्राप्त होता है। जिसको वैज्ञानिक दृष्टि से कार्डिसेप्स सायनेंसिस (cordyceps sinensis) के नाम से वर्गीकृत किया जाता है। और इसको अंग्रेजी में (caterpillar fungus) कमला कवक या फफूंदी कहा जाता है। सर्वप्रथ इसका उल्लेख तिब्बतियों द्वारा किया गया, तिब्बती यसलाई भाषा में इस जडी़ को यार्शकुन्भु एवं यार्शागुन्बु बोलते है , जिसका अर्थ इस प्रकार है :- "यार" का मतलब होता है वर्षा एवं "शा" का मतलब घास (बनस्पति), कुन्भु का मतलब होता है कीडा़, अर्थात वर्षा ऋतु में उगने वाला एक प्रकार का पनस्पतिक कीडा़। यार्शा गुम्बा हिमालयी क्षेत्र में पायी जाने वाली एक विशेष प्रकार की एक औषधी  है  जो एक कीड़े के जीवन चक्र का अद्भुभुत संयोग का परिणाम है।

कीडा़ जडी़ के प्रकार (प्रजातियां):

कीडे़ के समान दिखाई देने वाली "कीडा़जडी" अनेक प्रकार की होती है, इनकी अलग अलग प्रजातियां होती है, पूरे विश्व में इनकी लगभग 100 से ज्यादा प्रजातियां पायी जाती हैं, जिनमें से भारत मे 70 से 75 प्रजातियां पायी जाती है, अन्य प्रजातियां चीन, नेपाल आदि देशों मे पायी जाती है ..!


आय का श्रोत :

कीडा़ जडी़ वैसे तो काफी समय से लोगो के जहन मे था, पर आज कल कुछ समय से कीडा़ का प्रचलन काफी जोरो सोरों से चल रहा है, पहले हमारे लोग कीडा़जडी के बारे मे कम जानते थे परन्तु कुछ समय से अब हर कोई कीडा़जडी़ के बारे मे जानने लगा है,  पहाडीं क्षेत्रों में कीडा़ जडी लोगो के जीवन के आय का मुख्य श्रोत बनता जा रहा है, दूर दूर स्थित गाँवों के लोग कई कई दिनों तक कीडा जडी के लिये जंगलो मे ही डेरा बना कर रहते है..!
कीडा़ जडी के सीजन में जंगलो मे कई हजार की आवादी में लोगो का जमावडा़ लगता है, साल भर सुनसान रहने वाले ये जंगल ये पहाडि़याँ कीडा़ जडी के सीजन मे पूरी तरह भर जाता है, इन लोगों को देख कर एसा प्रतीत होता है कि जैसे कोई मेला लगा हो और मेले में ये  सारे के सारे लोगो शामिल होने आये  है, दिन भर के कठिन परिश्रम करने के बाद किसी को कोई भी जडी़ नहीं मिलती और किसी को कई जडि़यां मिल जाती है, ये जडि़यां भूमिगत होने के कारण आसानी से नहीं दिखाई देते है, और कई परेशानियों का सामना करने के बाद जा कर जडि़यां कहीं दिखाई देते है, इस जडी़ को ढूँढने के लिये खुद को भूमिगत होना पड़ता है, अर्थात भूमि पर बहुत ही करीब से इस जडि़यों को ढूंडना पडता है, जब  कोइ सुई जमीन मे खो जाती है और उसे ढूँढ्ने मे जितनी मेहनत होती है उसी प्रकार की मेहनत कीडा़ जडी को ढूँडने में करनी पड़ती है, कई कई घंटो के मेहनत करने के बाद ही ये जडि़या मिलती है, और इनको ढूँढ्ने मे आँखे भी दुखने लगती है।

व्यापार (कारोबार): 

इन जडि़यों को खरीदने के लिए कई सौकार (व्यापारी ) साथ मे हीं जंगकलों मँ अपना डेरा जमाए रहते है, क्योंकि वहाँ उनको जडियां सस्ती और आसानी  से प्राप्त हो जाती है, जैसे ही दिन मे लोग जडि़यां निकाल कर अपने डेरे पर जाते है तो खरीददार वहीं जडों को खरीदने पहुँच जाते है, जंगलो मे ही यह जडी़ 100-170 रूपये प्रति जडी़ बिकती है, इस जडी़ को करीदने के लिए सरकार द्वारा अनुमति लेने की जरूरी होता है इसके लिए व्यापारी को  अनुज्ञापत्र (licence) की जरूरत होती है, इसके लिए इन व्यापारियों को सरकार को इस पर कर देना पड़ता है,  इस लिए कई छोटे मोटे व्यापारी चोरी चोरी इनका व्यापार करते है, जिसे आम बोलचाल की भाषा मे काला बाजारी कहते है, जो आज हमारे देश मे आधे से ज्यादा मात्रा में हो रहा है, आज यह एक समस्या के रूप मे उभर रही है।  कीडा़ जडी़ से इस समय मे कई लोगों आर्थिक रूप से बडे़ रूप मे सहायता मिल रही है,  दूर दराज के पहाडी गाँवो मे रोजगार की कमीं होने के कारण लोगों का रुझान इस तरफ बढ़ रहा है और रोजगार  का माध्यम, कीडा़ जडी बनता जा रहा है, लोगो को आसानी से आर्थिक मदद मिल जाती है, इसी लिए सीजन में गाँव के लोग अन्य कार्य छोड कर सुदूर कई मील पहाडों की ऊँचाईयो में कई कई दिनों के लिये सिर्फ कीडा़ जडी निकालने के लिए चले जाते है.!  कई छोटे व्यापारी  मोटी रकम कमाने के लिये  चोरी से इस जडी़ का व्यापार करते है जो कि अवैधानिक है, जिन्हे हम आम भाषा मे तस्करी भी बोला जाता है, कीडे़ जडीं का कारोबार आज  पूरे विश्व में जोरों से चल रहा है, इसका मुख्य कारण है इस जडीं द्वारा बनाए जाने वाले महंगी औषधियां, एवं अन्य तरह की सामग्री जिनकी माँग उच्च स्थर पर ज्यादा है, इस जडी़ की खुदरा बाजार में कीमत लगभग 10 से 20 लाख रूपये प्रति तक किलो है। जो पहले के मुकाबले में कई गुना ज्यादा है, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार मे इसकी कीमत लगभग 25 से 35 लाख रुपये प्रति किलो तक है। कीडा़ जडी भारत से नेपाल के जरिये इस जडी़ का निर्यात होता है,..! और यहाँ से पूरे विश्व में अलग अलग जगह तक पहुँचाया जाता है।  फिर भिन्न प्रकार के उत्पादों मे प्रयोग करके उन्हें  दुगुने दामों मे बिकाया जाता है..! चीन, थाईलैंड, वियतनाम, कोरिया और जापान जैसे देशों में मांग सबसे अधिक है.!


उपयोग :

कीडा़ जडी से कई प्रकार की औषधियों का निर्माण किया जाता है,   कई प्रकार की जटिल बीमारोयों की दवाईयाँ इस जडी़ से बनाई जाती है, और कई रोगों के लिए लाभकारी है जो निम्नलिखित है.:-


1- अस्थमा के लिए
2- यह जडी़ यौनवर्धक मानी जाती है और इसके लिए औषधियाँ भी बनती है।
3- कई प्रकार के  तत्व, अनेक प्रकार के विटामिन इसमें उपलब्ध है।
4- हृदय,  यकृत तथा गुर्दे संबंधी व्याधियों में उपयोगी है
5- एलर्जी सम्बन्धी बीमारियों मे लाभकारी।
6- इससे कैंसर व दिल की बीमारी की दवा बनती
7- यारशा गम्बू से तैयार शक्तिवर्धक दवाओं का उपयोग खिलाडी़ करते हैं जिसका पता डोप टेस्ट में भी नहीं चल पाता है्। इस दवा का मुख्य तत्व सेलेनिम होता है जो एड्स, क्षय रोग, दर्द और ल्यूकेमिया आदि कई बीमारियों के इलाज में काम आता है। यह कैंसर कोशिकाओं के विखंडन को नियंत्रित करता है।

धन्यवाद..!

!! जय हिन्द !!

 © देव नेगी


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