श्री गोपीनाथ मन्दिर |
भगवान गोपीनाथ जी का यह मन्दिर उत्तराखण्ड के चमोली क्षेत्र के गोपेश्वर नामक शहर में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के प्रमुख रमणीय स्थलों मे से एक है। इस पवित्र स्थल के दर्शन मात्र से ही भक्त अपने को धन्य मानते हैं, एवं भग्वान सारे भक्तों के समस्त कष्ट दूर कर देते हैं, गोपीनाथ मंदिर केदारनाथ मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है. यहाँ पर मिले भिन्न प्रकार के पुरातत्व एवं शिलायें इस बात को दर्शाते है कि यहं मन्दिर कितना पौराणिक है, मन्दिर के आस पास, माँ दुर्गा, श्री गणेश एवं श्री हनुमान जी के मन्दिर हैं, जो भक्तों को और भी आनन्दमय एवं श्रद्धा से परिपूर्ण करते है,
भगवान गोपीनाथ जी के इस मन्दिर का दर्शन चार धाम यात्रा करने वाले श्रद्धालू चमोली से केदारनाथ यात्रा के दौरान गोपेश्वर में कर सकते है। भव्य शिलाओं से बने इस मंदिर का निर्माण और वास्तुकला का स्वरूप सभी को आकर्षित करता है. पौराणिक महत्व लिए गोपीनाथ मंदिर शैव मत के साधकों का प्रमुख तीर्थ स्थल है. गोपेश्वर आने वाले तीर्थ यात्री गोपीनाथ मंदिर के दर्शन करना नहीं भूलते।
गोपीनाथ मन्दिर की पौराणिकता :
गोपेश्वर में स्थित भगवान शिव के मन्दिर गोपीनाथ को लेकर विभिन्न धार्मिक एवं पौराणिक तथ्य है, पुराणों से इस जगह के बारे में ज्ञात होता है कि यह स्थल भगवान शिव की तपोस्थली थी, यहाँ पर भगवान शिव ने अनेक वर्षों तक तपस्या की तथा भगवान शिव द्वारा कामदेव को इसी स्थान पर भस्म किया गया था, कहा जाता है कि सती के देह त्याग के पश्चात जब भगवान शिव तप में लीन हो गए थे, तब ताड़कासुर नामक राक्षस ने तीनों लोकों में हा हा कार मचा रखा था, तथा कोई भी उसे हरा नहीं पाया तब ब्रह्मा के कथन अनुसार शिव का पुत्र ही इसे मार सकता है. सभी देवों ने भगवान शिव की आराधना करनी शुरू कर दी परन्तु शिव अपनी तपस्या से नहीं जागे इस पर इंद्र ने कामदेव को यह कार्य सौंपा ताकी भगवान शिव तपस्या को समाप्त करके देवी पार्वती से विवाह कर लें और उनसे उत्पन्न पुत्र ताड़कासुर का वध कर सके।
इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने भेजा और जब कामदेव ने भगवान शिव पर अपने काम तीरों से प्रहार किया तो भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई तथा शिव ने क्रोधित हो कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह त्रिशूल इस स्थान पर गढ़ गया जहाँ पर वर्तमान में गोपीनाथ जी का मंदिर स्थापित है, इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा अनुसार यहां पर राजा सगर का शासन था. इसी राजा के नाम से आज भी यहाँ गोपेश्वर के निकट एक गाँव जिसका नाम सगर है, कहते हैं कि उस समय एक विचित्र घटना घटी एक गाय जो प्रतिदिन इस स्थान पर आया करती थी तथा उसके स्तनों का दूध स्वत: ही यहां पर गिरने लगता जब राजा को इस बात का पता चला तो राजा ने सिपाहियों समेत उस गाय का पीछा किया संपूर्ण घटनाक्रम को देखकर राजा के आश्चर्यचकित गहो गया जहाँ गाय के दूध की धारा स्वतः ही बह रही थी वहाँ पर एक शिव लिंग स्थापित था, इस पर राजा ने उस पवित्र स्थल पर मन्दिर का निर्माण किया।
पौराणिक त्रिशूल :
श्री गोपी नाथ मंदिर के दर्शन एवं परिक्रमा करने के बाद बाँयी तरफ श्री हनुमान जी के मन्दिर के सामने एक विशाल त्रिशूल है, मंदिर के दर्शन के बाद त्रिशूल के दर्शन एवं परिक्रमा करने प्रवधान है मान्यताओं के अनुसार जब भगवान शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह यहाँ गढ़ गया। त्रिशूल का धातु अभी भी सही स्थित में है, त्रिशूल की धातु का सही ज्ञान तो नहीं हो पाया है परंतु इतना अवश्य है कि यह अष्ट धातु का बना होगा, जिस पर मौसम भी प्रभावहीन है और यह आज के युग में एक आश्वर्यजनक बात है। यह भी माना जाता है कि शारिरिक बल से इस त्रिशुल को हिलाया भी नहीं जा सकता, जबकि यदि कोई सच्चा भक्त इसे उंगली से भी छू भी ले तो इसमें कम्पन होने लगता है। श्रद्धा के सागर मे बहने वाले भक्त यहाँ अपनी भक्ती की आजमाइस जरूर करते है!गोपीनाथ मन्दिर महत्व :
भगवान गोपीनाथ जी के इस मन्दिर का महत्व बहुत ही विशेष है। हर रोज सैकडो़ श्रद्धालू यहाँ भगवान के दर्शनार्थ आते हैं, इस मन्दिर में शिवलिंग, परशुराम, भैरव जी की प्रतिमाएँ विराजमान हैं. मन्दिर के निर्माण में भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है. मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है मंदिर से कुछ दूरी पर वैतरणी नामक कुंड स्थापित है जिसके पवित्र जल में स्नान करने का विशेष महत्व है। सभी श्रद्धालू इस पवित्र स्थल के दर्शन प्राप्त करके अपने को धन्य मानते हैं ।धन्यवाद !
© देव नेगी
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