पिछला शेष भाग :-
हर्षिल:
नंदनवन तपोवन :
गंगोत्री से 25 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर के ऊपर एक कठिन ट्रेक में नंदनवन ले जाती है जो भागीरथी चोटी के आधार (बस) शिविर गंगोत्री से 25 किलोमीटर दूर है। यहां से शिवलिंग चोटी का मनोरम दृश्य दिखता है। गंगोत्री नदी के मुहाने के पार तपोवन है जो अपने सुंदर यहां चारगाह के लिये मशहूर है तथा शिवलिंग चोटी के आधार के चारों तरफ फैली है।गंगोत्री चिरबासा :
(दूरीः 9 किलोमीटर, समयः 3-4 घंटे) गौमुख के रास्ते पर 3,600 फीट ऊंचे स्थान पर स्थित चिरबासा एक अत्युत्तम शिविर स्थल (केम्प स्पॉट) है जो विशाल गौमुख ग्लेशियर का आश्चर्यजनक दर्शन कराता है। चिरबासा का अर्थ है चिर का पेड़। यहां से आप 6,511 मीटर ऊंचा मांडा चोटी, 5,366 मीटर पर हनुमान तिब्बा, 6,000 मीटर ऊंचा भृगु पर्वत तथा भागीरथी देख सकते हैं। चिरबासा की पहाड़ियों के ऊपर घूमते भेड़ों को देखा जा सकता है।गंगोत्री-भोजबासा :
(दूरीः 14 किलोमीटर, समयः6-7 घंटे) भोजपत्र पेड़ों की अधिकता के कारण भोजबासा गंगोत्री से 14 किलोमीटर दूर है। यह जाट गंगा तथा भागीरथी नदी के संगम पर है। गौमुख जाते हुए इसका उपयोग पड़ाव की तरह होता है। मूल रूप से लाल बाबा द्वारा निर्मित एक आश्रम में मुफ्त भोजन का लंगर चलाता है तथा गढ़वाल मंडल विकास निगम का विश्राम गृह, आवास प्रदान करता है। रास्ते में आप किंवदन्त धार्मिक फूल ब्रह्मकमल देख सकते है जो ब्रह्मा का आसन है।केदारताल :
गंगोत्री से 14 किलोमीटर दूर इस मनोरम झील तक की चढ़ाई में अनुभवी आरोहियों (ट्रेकर्स) की भी परीक्षा होती है। बहुत ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों पर चढ़ने के लिये एक मार्गदर्शक की नितांत आवश्यकता होती है। रास्ते में किसी प्रकार की सुविधा नहीं है इसलिये सब कुछ पहले प्रबन्ध करना होता है। झील पूर्ण साफ है, जहां विशाल थलयसागर चोटी है। यह स्थान समुद्र तल से 15,000 फीट ऊंचा है तथा थलयसागर जोगिन, भृगुपंथ तथा अन्य चोटियों पर चढ़ने के लिये यह आधार शिविर है। जून-अक्टुबर के बीच आना सर्वोत्तम समय है। केदार ग्लेशियर के पिघलते बर्फ से बनी यह झील भागीरथी की सहायक केदार गंगा का उद्गम स्थल है, जिसे भगवान शिव द्वारा भागीदारी को दान मानते हैं। चढ़ाई थोड़ी कठिन जरूर है पर इस स्थान का सौदर्य आपकी थकावट दूर करने के लिये काफी है।उत्सव:
जब सर्दी प्रारंभ होती है, देवी गंगा अपने निवास स्थान मुखबा गांव चली जाती है। वह अक्षय द्वितीया के दिन वापस आती है। उसके दूसरे दिन अक्षय तृतीया, जो प्रायः अप्रैल महीने के दूसरे पखवाड़े में पड़ता है, हिन्दु कैलेण्डर का अति पवित्र दिन होता है। इस समय बर्फ एवं ग्लेशियर का पिघलना शुरू हो जाता है तथा गंगोत्री मंदिर पूजा के लिए खुल जाते हैं। देवी गंगा के गंगोत्री वापस लौटने की यात्रा को पारम्परिक रीति-रिवाजों, संगीत, नृत्य, जुलुस तथा पूजा-पाठ के उत्सव के साथ मनाया जाता है।इस यात्रा का रिकार्ड इतिहास कम से कम 700 वर्ष पुराना है और इस बात की कोई जानकारी नहीं कि इससे पहले कितनी सदियों से यह यात्रा मनायी जाती है। मुखबा, मतंग ऋषि के तपस्या स्थान के रूप में जाना जाता है। इस यात्रा के तीन या चार दिनों पहले मुखबा गांव के लोग तैयारियां शुरू कर देते हैं। गंगा की मूर्त्ति को ले जाने वाली पालकी को हरे और लाल रंग के रंगीन कपड़ो से सजाया जाता है। जेवरातों से सुसज्जित कर गंगा की मूर्त्ति को पालकी के सिंहासन पर विराजमान करते हैं। पूरा गांव गंगात्री तक की 25 किलोमीटर की यात्रा में शामिल होते हैं। भक्तगण गंगा से अगले वर्ष पुनः वापस आने की प्रार्थना कर ही जुलुस से विदा लेते हैं। जुलुस के शुरू होने से पहले बर्षा होना जो प्रायः होती है – मंगलकारी होने का शुभ संकेत हैं।
जुलुस में पास के गांव से भी देवी गंगा के साथ अन्य देवी – देवताओं की डोली शामिल होती हैं। उनमें से कुछ अपने क्षेत्र की सीमा तक साथ रहते हैं। सोमेश्वर देवता भी पालकी में सुसज्जित होकर शामिल होते हैं। गंगा औऱ सोमेश्वर देवता का मिलन अधिकाधिक उत्सव का संकेत हैं। लोग दोने देवताओं की प्रतिमा को साथ में लेकर स्थानीय संगीत के धुन में नाचते एवं थिरकते चलते हैं।
जब दोनों पालकी की यात्रा शुरू होती है तो इस जुलुस में सोमेश्वर देवता की अगुआनी। नेतृत्व में गढ़वाल स्काउट (आर्मी बेण्ड) पारम्परिक रीति-रिवाजों में भाग लेते हैं तथा पारम्परिक संगीत बजाते हैं।रास्ते में लोग देवी-देवताओ की पूजा करते हैं तथा भक्तगणों को जलपान मुहैया कर उन्हें मदद करते हैं। धराली गांव की सीमा पर, सोमेश्वर देवता की यात्रा समाप्त होती है तथा गंगा अपनी यात्रा जारी रखती हैं। यात्रा के दूसरे दिन यह जुलुस गंगात्री पहुंचता हैं तथा भक्तगण देवी गंगा के आगमन एवं स्वागत की प्रतिक्षा कर रहे होता हैं।
विस्तृत रीति-रिवाजों तथा पूजा-पाठ के बाद मंदिर के दरबाजे खोले जाते हैं और गंगा की प्रतिमा को मंदिर में स्थापित किया जाता हैं। इसके साथ ही गंगात्री मंदिर के दरबाजे पुनः लोगों के पूजा-पाठ के लिए खोल दिये जाते हैं।इसी प्रकार जब बर्फ जमना शुरू होने और यात्रा सीजन समाप्त होने पर पारम्परिक रीति-रिवाजों तथा उत्सव के साथ देवी गंगा वापस मुखबा गांव वापस चली जाती हैं।
पहुंचने का मार्ग :
वायुमार्ग- देहरादून स्थित जौलीग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है। दूरी 226 किमी है।
सड़क मार्ग- गंगोत्री ऋषिकेश से बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह मार्ग 259 किमी है। गंगोत्री से यमुनोत्री में फूलचट्टी तक की दूरी 8 किमी है तथा बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा गंगोत्री तक की दूरी 229 किमी है।
दूरियाँ:
धन्यवाद..!!
संयोजन : देव नेगी.
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