एक तरफ शहरों की चकाचौंद तो दूसरी ओर् बर्फीले पहाड़ सुन्दर गाँवों की सालीनता , हरे भरे पेडो़ की ठण्डी छाँव, शकून की जिंदगी इनमें से आप किसका चुनाव करेंगे??
जी हाँ यह एक महत्वपूर्ण सवाल है, आज कल शहरों की इस भागदौड़ की जिन्दगी में जहाँ व्यक्ति के पास खुद के लिए समय का अभाव होता जा रहा है ! वहीं दूसरी ओर अभी भी पहाडी़ गाँवों में सकून की जिन्दगी का आनन्द है, शहरों की इस हालात से अन्जान कई लोग हर दिन गाँवो से शहर की और रुख करते है, अपने साथ मन में कई प्रकार के सपने संजो कर लाते है, परन्तु उनको यह पता नहीं होता कि वो शहरों की सच्चाई से कोशों दूर है !! सक्सर जैसा दिखता है वैसा होता नही है, खौर .. अपने सपनो को हकीकत की राह दिखने के लिए शहर की ओर रुख करने के बाद जब शहर की हकीकत से रूबरू होता है तो व्यक्ति खुद को कोशने लगता है, अपने अनुरूप काम न मिलने पर मजबूरन अपने आदर्शो का त्याग करके उसके बिपरीत अन्य कार्यों को करने के लिए वाद्य हो जाता है, और जिस कारण जीवन मैं भटकाव की स्थिति पैदा हो जाती है ! फिर वहीं से सुरू होता है जीवन का संघर्ष !
अब यहाँ सावाल यह उठाता है की आखिर यह "पलायन क्यों"? "इसका कारण क्या"? "जिम्मेदार कौन"? एवं इसको रोकने क्या उपाय है?
१. आखिर पलायन क्यों ? :
आज की स्थिति को मद्यनजर रखते हुए अगर पहाड़ों (उत्तराखण्ड) के गॉंवों की बात करे तो कई गाँवों मे सुनसान की स्थिति पैदा हो गयी है, गाँव में सिर्फ बुजुर्ग एवं बच्चें ही नजर आते हैं | कही कहीं तो बंजर घरों की दुर्दशा देखने को मिलता है, दूर दरस्त के गाँवो से लेकर शहरी क्षेत्रो के गाँवों तक सब सुन सान पडे़ हुए है ।
दोस्तों की संगत या कुछ अलग करने की चाह पलायन का एक कारण हो सकता है, परन्तु मुख्य कारण जो समझ में आता है वो है उचित जीवन दिशा का न हो के साथ अनुकूल समय का अभाव एवं नौकरी पेशे की कमी !
गाँव का युवा वर्ग अच्छा जीवन यापन हेतु शहर की ओर रुख करता है | साधारणतया अक्सर देखने को मिलता है, अगर किसी का दोस्त या सगे संबन्धी शहरी क्षेत्रों में रहते है, उनकी बडीं बडीं बातों में आकर , कई लोग शहरों की ओर चल देते है, और दूसरा महत्वपूर्ण कारण है अनुकूल नौकरी एवं अनुकूल संसाधनों का अभाव ! उत्तराखण्ड मे कई गाँव एसे हैं जहाँ अभी तक सड़क, बिजली, अस्पताल, स्कूल अदि नहीं हैं, कई गाँवो में लोग कई किलोमीटर पैदल चल कर जाते है, बिजली, स्वस्थ्य केन्द्र, स्कूल न होने के कारण शिक्षा का अभाव एवं अन्य कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है । कहीं स्कूल हैं भी तो अध्यापक नहीं होते ! जिस कारण बच्चे बढ़ नहीं पाते, और जहाँ अध्यापक हों भी तो वे बच्चों से अपने व्यक्तिगत कार्य करवाते है, उचित नौकरी न मिलने के कारण नौकरी की तलाश में लोग शहरों की और चल पड़ते, मन में उत्साह कई सपने संजोये जब वह शहर की चकाचौध की दुनियाँ में पहुँचता है, तो उसके सपनो की तस्वीर ही बदल जाती है,! इस चकाचौंध मे कहीं खो जाते है संजोने के लिए सिर्फ सपने ही रह जाते है ! समय बीत जाने के बाद खुद तो तलाशने मे लग जाते है !
२. इसका कारण क्या ? :-
इसके दो पहलू देखने को मिलता है, पहला पहलू यह है:-
जिस प्रकार से लोगो की सोच आधुनिकता के साथ बदलती जा रही है, यह सोच भी एक मुख्य कारण है, झूठा दिखावा !!! इस दिखावे के लिए आज कल लोग क्या क्या न करने लगे हैं, जो लोग शहर में रहते हैं, चाहे वो शहर में कैसी भी जिन्दगी जी रहे हो, परन्तु घर लौटते वक्त नए कपड़े पहन कर टिप-टॉप बन जाते है, और झूठी सान के कए कई प्रकार के झूठ बोलने लगते है । साथ ही लोग आधुनिक एवं भौतिक सुख-सुविधाओं के अधीन हो चुके हैं, आरामदायक जीवन जीने की आदत पड़ गयी है, आदत खराब हो गयी है, महनत करने से कतरातने लगे है, जिस कारणवश शहर की ओर रुख करने लगते है, उनको लगता है शहर में आराम की जिन्दगी जीने को मिलेगा, परन्तु लोग सच्चाई से कोशों दूर होते है !
दूसरा पहलू : मूल स्थिति के अनुसार आर्थिक तौर पर तंगी, रोजगार एवं उच्च शिक्षा का अभाव, जिस कराण पलायन करना मजबूरी बन जाती है, बेरोजगारी एक अभिशाप बन कर खडीं हुई है, अगर इस दौर की बात करें तो हर व्यक्ति चाहता है कि वो शिक्षित हो, उसके पास अच्छी नौकरी हो, वह उत्तम जीवन जी सके, और वो उत्तम जीवन यापन करते है !
आज कल हम अपनी सांस्कृतिक विरासतों, हमारी रीति-रिवाज, हमारी सभ्यता, गीत संगीत से भी दूर होते जा रहे है, आधुनिकता के कारण अपनी संस्कृति में रूचि का अभाव एवं दूसरों की संस्कृति को अपनाने लागे है, इस दौर मे लोगों पर फैशन का एसा भूत सवार है, कि सब कुछ भूलने लगे है, यह बहुत दुःख की बात है कि हमारी संस्कृति लुप्त के कगार पर खड़ी है !
जिम्मेदार कौन ? :
पलायन रोकने के उपाय :
इसके लिए हमें अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझना और अपनी जिम्मेदारी को निभाना जरूरी है | सबसे पहले अपनी सोच मे बदलाव लाने की आवश्यकता है, फिर अपने समाज की सोच में, कहते है न "हम बदलेंगे तभी समाज बदलेगा" !! सुरुआत अपने आप से करनी होगी, सबसे पहले हमें अपने घर मे रहना सीखना होगा, एक नयी सोच के साथ बदलाव बहुत जरूरी है पहले के मुकाबले, अब हर क्षेत्र में हम प्रगतिशील है, हमको चाहिए की हम सुचारु रूप से इस तंत्र के सभी पहलुओ को और भी मजबूत बना सकें, चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो, हमारी कोशिस रहे शिक्षा, सामासिक असमानताएं , राजनैतिक, आध्यात्मिक एवं आर्थिक तौर पर सक्षम हो पाएं, जिससे उचित शिक्षा एवं रोजगार मिल सके, मन में भटकाव की स्थिति हो ! अपनी संस्कृति-सभ्यता, रीति-रिवाज, गीत-संगीत, के प्रति रूची एवं लगाव! अपनी संस्कृति को सर्वव्यापी बनाने के लिए कोशिश करने की आवश्यकता है !धन्यवाद..!
© देव नेगी.
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bahut khood dev bhai
जवाब देंहटाएंशुक्रिया.. धर्म जी..:)
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