मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

माँ उमा देवी मंदिर कर्णप्रयाग, (उत्तराखण्ड)



हमारे उत्तराखण्ड में देवताओं का वास है, इसमे तनिक भी संचय नहीं है, उत्तराखण्ड की देव भूमि में अनेकों मंदिर भिन्न भिन्न स्थानों पर स्थापित है, हर एक मंदिर की अपनी विशेषता है, कई मंदिरों के बारे मे सिर्फ स्थानीय लोगों को ही पता है, जिस कारण अन्य लोग इस बारे में पता नहीं है, हमको चाहिए कि हम अपने उत्तराखण्ड के हर एक एक चीजों के बारे में सबको बताएं जो पकृ्ति द्वारा हमें दान स्वरूप प्रदान हुई है, हमारा उद्देश्य अपने उत्तराखण्ड को विश्व पटल की धरातल पर स्थापित करना है..!  
उत्तराखण्ड के इन अलोकिक पौराणिक एवं भव्य  मंदिरों में से एक मंदिर है, माँ उमा देवी का मंदिर, जो साक्षात माँ दुर्गा  (पार्वती) का स्वरूप हैं इनको ब्रह्मचारिणी के नाम से भी पुकारा जाता है, जिनकी पूजा नवरात्रों के दौरान द्वितीय दिवस में की जाती है..! माँ उमा देवी का यह पौराणिक मंदिर उत्तराखण्ड मे च़मोली जिले के कर्णप्रयाग नामक स्थान पर स्थापित है, कर्णप्रयाग को पंच प्रयागों मे से एक प्रयाग माना जाता है।


स्थापना:

 इस पौराणिक मंदिर की स्थापना 8वीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी, परन्तु कुछ लोगों के अनुसार माँ उमा देवी की मूर्ति इसके बहुत पहले ही स्थापित थी। कहा जाता है कि संक्रसेरा के एक खेत में माँ उमा देवी का जन्म हुआ। एक डिमरी ब्रह्मण को देवी ने स्वप्न में दर्शन देकर अलकनंदा एवं पिंडर नदियों के संगम पर उनकी प्रतिमा स्थापित करने का आदेश दिया। यहां के डिमरियों को उमा देवी के मायके वाले माने  जाते है, जबकि कापरिपट्टी के शिव मंदिर को उनका ससुराल समझा जाता है। हर कुछ वर्षों बाद देवी 6 महीने की यात्रा पर जोशीमठ तक गांवों के दौरे पर निकलती है। देवी जब इस क्षेत्र से गुजरती है तो प्रत्येक गांव के भक्तों द्वारा पूजा, मिष्ठान तथा जाग्गरों का आयोजन किया जाता है, जहां से देवी की डोली  गुजरती है हर तरफ गाँव वालों का जमावडा़ माँ के दर्शन की एक झलक के लिए लग जाता है, और  जब वह अपने मंदिर लौटती है तो एक भगवती पूजा कर उन्हें मंदिर में पुनर्स्थापित कर दिया जाता है। 

महत्व:

यहाँ हर रोज कई संख्या मे लोग माँ के दर्शन के लिए आते है, और माँ के दर्शन पा कर खुद को धन्य महसूस करते है, कहते है माँ के द्वार पर जो भी भक्त सच्ची श्र्द्धा भक्ति के साथ आता है उनकी सारी मनोकामनांऎ पूरी हो जाती है वो कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता, माँ का आशीर्वाद सदैव उनके साथ रहता है।  इस मंदिर पर नवरात्री समारोह धूम-धाम से मनाया जाता है। क्षेत्रीय लोगों द्वारा ही नहीं बल्कि दूर दूर से आये लोगों द्वारा यहाँ पूजा अर्चना की जाती है, और माँ के  दर्शन के लिए आये भक्त माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं..!
यहां पूजित प्रतिमाओं में उमा देवी, पार्वती, गणेश, भगवान शिव तथा भगवान विष्णु आदि शामिल हैं।  उमा देवी की मूर्ति का दर्शन ठीक से नहीं हो पाता क्योंकि इनकी प्रतिमा दाहिने कोने में स्थापित है जो गर्भगृह के प्रवेश द्वार के सामने नहीं पड़ता, वर्ष 1803 की बाढ़ में पुराना मंदिर ध्वस्त हो गया तथा गर्भगृह ही मौलिक है। इसके सामने का निर्माण वर्ष 1972 में किया गया। जिसका अस्तित्व आज भी विराजमान है, 
वास्तिकता से हम कितनीं भी दूर क्यों न भागें पर सत्यता हमेशा प्रमाणिक होती है,. हम अपनी आधी-अधूरी जानकारी में सत्यता को चुनौती दे देते है, जो कि किसी भी प्रकार से मौलिकता को सिद्ध करने वाली नहीं होती है । मेरा कहने का मतलब यह है कि जितने भी हमारी पौराणिक एवं प्रचीन धरोहर हैं वो सत्यता को प्रमाणिकता के साथ प्रदर्शित करते हैं। इसका साक्षात एक उदाहरण है माँ उमा देवी का मंदिर..!

जय माता दी..!!



नोट : यह लेख स्वयं तथा भिन्न जगहों से ली गयी जानकारी के आधार पर लिखा गया है..!  

धन्यवाद..!!

 देव नेगी



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