शनिवार, 11 मई 2013

श्री तुंगनाथ मन्दिर, चन्द्रशिला और चोपता :


श्री तुंगनाथ मन्दिर :

तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखण्ड (गढ़वाल) के चमोली जिले में स्थित है, यह समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर की ऊँचाई पर विद्यमान है, भगवान शिव के स्वरूप पंचकेदारों मे से एक केदार तुंगनाथ जी को कहा जाता है ! 
पंच केदारों मे से एक केदार के रूप मे भगवान तुंगनाथ जी को पूजा जाता है, यह एक प्राचीन एवं पौराणिक मंदिर है, कहा जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु 1,000 (एक हजार्) वर्ष पहले पाण्डवों द्वारा इस मन्दिर निर्माण किया गया था,  भगवान शिव महाभारत युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र मे हुए नरसंहार के कारण पाण्डवों से रुष्ट थे।   








धार्मिक महत्व एवं कथा :


 मन्दिर से जुड़ीं अनेक कथाएँ  एवं मान्याताएँ प्रचालित है , एक  पौराणोक कथा के अनुसार जब महाभारत मे युद्ध मे पांडवो की विजय हुए, तो पाण्डवो पर भ्रातृहत्या ( कौरवों) की हत्या का पाप लगा, एवं इस पाप से मुक्ति पाने  के लिए पाण्डव भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे,  परन्तु भगवान शिव रुष्ट थे, जिस कारण उन्होने दर्शन नहीं दिया, पाण्डव भगवान के दर्शनार्थ काशी जा पहुँचे भगवान  केदार नाथ  चले गये, पाण्डव भी भगवान को खोजते हुए  केदर नाथ  पहुँच गये, यहाँ भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया और बाके जानवरों के साथ  जा कर  मिल गए,  पाण्डवों को संदेह हो गया, पाण्डव भगवान के दर्शन के लिए उपाय सोचने लगे, सोचते सोचते उनको एक मात्र उपाय समझ मे आया वह यह,  भीम ने अपना विशाल रूप धारण करके अपने दोनो पाँव दो पहाडो़ पर फैला दिया ! और सारे जानवरों को दोनो टांगो के मध्य से निकाल दिया, परन्तु शंकर रूपी बैल पैरों के नीचे से जाने के लिए तैयार नहीं हुए,   जैसे ही भीम उस बैल को पकड्ने लगा, वह बैल धीरे धीरे भूमि के अन्तर्ध्यान  होने लगा, और अंत मे भीम ने बैल का त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड् लिया ! भगवान शिव के प्रति पाण्डवों की सच्ची श्रद्धा भक्ति एवं दृ्ढ संकल्प को देख कर भगवान प्रसन्न हो गये एवं पाण्डवो को अपना दर्शन दे कर क्षमा कर दिया। 
उसी समय से भगवान शिव के बैल रूपी पीट की आकृ्ति की पिण्ड रूप मे श्री केदारनाथ मे पूजा की जाती है। मान जाता है कि जब भगवान शिव बैल के रूप मे अन्तर्ध्यान हुए तो उन्के धडं से उपर का भाग काठमांडू मे प्रकट हुआ जहाँ आज के युग मे श्री पशुपति नाथ के रूप मे पूजा होती है ।भगवान शिव का मुख रुद्रनाथ में, जटाएं कल्पेश्वर में,  भुजाएं तुंग नाथ मे एवं  नाभि मद्यमेश्वर में प्रकट हुई,  इन चार स्थानो सहित श्री केदार् नाथ जी को पंचकेदारों के रूप मे जाना जाता है ।


यहाँ आने से  श्रद्धालूओं के समस्त पाप, कष्ट समाप्त हो जाते है, हर मनोकामनाएँ पूरी होती है,  एवं भगवान शिव की असीम कृ्पा प्राप्त होती है, यहाँ आने वाला  श्रद्धालू कभी खाली हाथ वपिस नहीं जाता, भगवान शिव उनकी झोली भर कर ही उनको  भेजते है,  
तुंगनाथ मंदिर  मोटर मार्ग से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, भगवान के इस द्वार पर जाते वक्त मार्ग में शीतल घने बन, मनमोहक बुराँश के फूल एवं  सुन्दर वातावरण मन को आनन्दित कर देते है, पहुँचते ही स्वर्ग की अनुभूति प्राप्त  होती है, एसा प्रतीत होता है कि सक्षात भगवान इस धरती पर प्रकट हो गये हों और उनके दर्शन हो गये हों.!
ऊँचाई पर होने के कारण इसके आसपास का दृ्ष्य काफी मनोरम एवं मन को मोहक करने वाला है,  प्रतिवर्ष यहाँ हजारों की तादात में  श्रद्धालू  भगवान के दर्शनार्थ हेतु एवं पर्यटक  घूमने आते है, शर्दियों के मौसम में यहाँ हिमपात होता है, पूरा क्षेत्र बर्फ की सफेद चादर से ढक जाती है, जो चाँदी के समान चमकने वाली होती है,



चन्द्रशिला  :

तुंगनाथ मंदिर से लगभग एक से डेढ किलोमीटर की दूरी पर चन्द्रशिला चोटी एवं मन्दिर  जो लगभग 14 हजार फीट की ऊँचाई पर है, जहाँ पर पहुँचने के बाद एसा प्रतीत होता है कि मानो दुनियाँ के सर्वोच्च स्थान पर आ गए हों,  यहाँ से  आस पास का नजारा देखने योग्य होता है, चारों ओर कई किलोमीटर दूरी तक  फैली बर्फ से ढकी पर्वत श्रृखलाएँ,  सुन्दर वातावरण, मनमोहक दृ्श्य, सुहाना मौसम,  मन को शांति प्रदान करता है !




चोपता:

तुंगनाथ से  3 किलोमीटर की दूरी पर 'चोपता' गढवाल क्षेत्र के सबसे सुन्दर जगहों मे से मुख्य है, चोपता समुद्र तल से लगभग 10 हजार फीट पर स्थित है, यहाँ चारों ओर कई मील तक  फैली मखमली घास के बुग्याल एवं उनमें खिले रंग-बिरगें फूल, नीचे की रेंज मे जंगल, बुराँश के फूलों का नजारा अदभुत देखने योग्य होता है, प्राकृ्तिक सौंदर्य का यह नजारा पर्यटको को खूब लुभाता है, यहाँ   पूरे विश्व भर  से कई पर्यटक इन  नजारों को देखने आते है, यहाँ तक कि चोपता के बारे में ब्रिटिश कमिश्नर एटकिन्सन ने कहा था कि "जिस व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में चोपता नहीं देखा उसका इस पृथ्वी पर उसका जन्म लेना व्यर्थ है" 
यहाँ की इस सुन्दरता को देखते हुए फिल्मउद्योग के कई लोग फिल्मों की शूटिंग करने यहाँ आते हैं ! 

मई से नवम्बर  के मध्य यहाँ की यात्रा की जा सकती है। वैसे  बाकी समय में भी की जा सकती है परन्तु बर्फ गिरी होने के कारण से वाहन की यात्रा कम और पैदल यात्रा अधिक होती है। दिसम्बर से मार्च के बीच मे यहाँ बर्फ-वारी होती है इस दौरान इसका लुफ्त उठाने  यहाँ आया जा सकता  है।


पहुँचने के मार्ग : 

यहाँ  दो मार्गो से पहुँचा जा सकता है :

 प्रथम मार्ग : ऋषिकेश से गोपेश्वर के मार्ग से पहुँचा जा सकता है,  ऋषिकेश से गोपेश्वर की दूरी 292 किलोमीटर है, और गोपेश्वर से चोपता 40 किलोमीटर और आगे है, यहाँ तक  पूरी मोटर मार्ग है आगे यहाँ से तुंगनाथ जी 3 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है।

दूसरा मार्ग : ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर  ऋषिकेश से उखीमठ की दूरी 178 किलोमीटर है, और फिर ऊखीमठ से आगे चोपता 24 किलोमीटर है, यह भी पूरी तरह मोटर मार्ग है,  यहाँ से भी तुंगनाथ जी 3 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है।



यातायात सुविधा:

ऋषिकेश से दोनो जगहों गोपेश्वर और ऊखीमठ के लिए बस सेवा उपलब्ध है। इन दोनों स्थानों से चोपता तक  बस सेवा है, इसके अलावा स्थानीय टैक्सी और जीप भी बुक कराई जा सकती है।



आवासीय सुविधाएं :

गोपेश्वर और ऊखीमठ, दोनों स्थानों पर 'गढ़वाल मंडल विकास निगम' के विश्रामगृह हैं। इसके अलावा निजी होटल, लॉज, धर्मशालाएं भी हैं, जो आसानी से अपने अनुसार  मिल जाती हैं। चोपता में भी आवासीय सुविधा उपलब्ध है एवं  स्थानीय लोगों की दुकानें भी हैं।



 समय और मौसम:

दर्शन एवं यात्रा का समय अप्रेल के बाद मई से लेकर नवम्बर तक उचित रहता है, इस दौरान मौसम भी ठीक रहता है, हालाकिं थोडी ठंड जरूर रहती है, इसके लिए गरम कपडें साथ में रखना ही ठंड का निवारण है, अन्य समय में काफी ठंड के साथ बर्फवारी भी रहती है,


टिप्पणी : यह लेख भिन्न जगहों से ली गयी जानकारी के आधार पर लिखा गया है !


धन्यवाद !!!

© देव नेगी


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